
What Are Vibrations Made Of? The Secret of Soul, Elements, and Thought Power | Behad Gyan
विचारों के वाइब्रेशनस वायु और अग्नि तत्व से मिलकर बनते हैं। आत्मा की सोच ही उसकी शक्ति को घटाती या बढ़ाती है। जितना निर्लिप्त और निर्विचार बनेंगे, उतना आत्मा सशक्त होगी। यह लेख समझाता है कि क्यों “कम सोचो, कम बोलो, अधिक आत्मस्मृति में रहो” ही आत्मा का उत्थान है।

Who Really Gave the Gita? Krishna Spoke, Almighty Sent the Knowledge
गीता का भगवान कौन?
कृष्ण ने गीता बोली, परंतु गीता का वास्तविक ज्ञानदाता कोई और है — स्वयं परमधाम से आने वाले Almighty Authority। कृष्ण तो एक दिव्य माध्यम थे। गीता में वर्णित "मामेकं शरणं व्रज" में 'मैं' का अर्थ है वह परमतत्व, जो जन्म-मरण से परे है। इसी ज्ञान से आत्मा को मिलती है परम पद की प्राप्ति।

ज्ञान ही जीवन है: आत्म परिवर्तन से विश्व परिवर्तन तक का मार्ग
जब तक हमारे भीतर आत्मज्ञान की दृष्टि नहीं जागती, तब तक हमारी सोच, भावनाएँ और कर्म वास्तविक रूप से नहीं बदल सकते। ज्ञान ही जीवन की दिशा है — यह हमें सिखाता है कि हम आत्मा हैं, शरीर नहीं। जब यह अनुभूति गहरी होती है, तब ही संकल्प शक्ति, पुरुषार्थ और सेवा भाव जाग्रत होते हैं। स्वयं में परिवर्तन लाकर ही हम विश्व में शांति और प्रकाश फैला सकते हैं। यही है बापूजी के बेहद ज्ञान का सार।

Sankalp Shakti: The Real Power Behind Soul Transformation and World Change
"परिवर्तन का आधार केवल ज्ञान नहीं, दृढ़ संकल्प भी है। संकल्प शक्ति से ही आत्मा जाग्रत होती है और जीवन रूपांतरित होता है। सफलता का मार्ग इच्छा शक्ति, संकल्प शक्ति और एकाग्रता से होकर गुजरता है — यही है विश्व परिवर्तन की असली चाबी।

Who Is the Real God of the Gita? Revealing the Source Through Infinite Knowledge
गीता का भगवान कौन है? बेहद का बाप स्वयं ज्ञान द्वारा अपना परिचय देता है — वह जो आत्मा का नहीं, अनंत ब्रह्मांडों का भी ज्ञान देता है। वही गीता का असली भगवान है, जो हद और बेहद दोनों की आत्माओं की पहचान कराता है।

स्वयं परिवर्तन से विश्व परिवर्तन: ज्ञान, योग, सेवा और धारणा की शक्ति
ब्रह्मज्ञान, योग, सेवा और धारणा — यही हैं स्वयं परिवर्तन के चार दिव्य स्तंभ, जिनके द्वारा आत्मा परमशान्ति को प्राप्त करती है और विश्व परिवर्तन की चाबी बनती है। ज्ञान आत्मा को जीवित करता है, योग पावर देता है, सेवा वायुमंडल बदलती है और धारणा आत्मा को दिव्य स्वरूप में स्थित करती है

हम दुःखी क्यों हैं? आत्मा में पावर लाकर सुखी कैसे बनें – बेहद ज्ञान से समाधान
हम दुःखी क्यों हैं? क्योंकि हम आत्मा की शक्ति खो चुके हैं और देह के मोह में फंसे हैं। बापूजी बताते हैं कि सच्चा सुख तभी मिलेगा जब हम आत्मा बनकर परम तत्वों से पावर भरें। आत्मा में पावर आते ही कर्म बदलते हैं, और कर्म बदलते ही जीवन सुखी हो जाता है।

ब्रह्मचर्य का असली अर्थ: बेहद की आत्मा की पवित्रता
ब्रह्मचर्य का अर्थ केवल इन्द्रिय संयम नहीं, बल्कि आत्मा का ब्रह्मस्वरूप में स्थित होना है। जब आत्मा निराकार ब्रह्म को स्मरण करते हुए कर्मयोगी बनती है, तभी वह सच्ची पवित्रता को प्राप्त करती है। यही आत्मस्वरूप का साक्षात्कार है — तीसरे नेत्र का खुलना।

स्थितप्रज्ञ: वह अवस्था जहाँ आत्मा परमशांति को छूती है
स्थितप्रज्ञ वह आत्मा है जो सुख-दुःख, हार-जीत, लाभ-हानि की लहरों में भी सागर जैसी शांत रहती है। जब आत्मा परमात्मा को जानकर अपने ब्रह्मस्वरूप में स्थित होती है, तभी वह स्थितप्रज्ञ बनती है — यही परमशांति की सच्ची अवस्था है। यह अवस्था ही आत्मा को परम तत्वों से जोड़कर विश्व परिवर्तन का कारण बनती है।”