मन और परम शांति – मन की चंचलता से आत्मा की शांति तक
मन – एक अद्भुत शक्ति
मन के ऊपर अनादि काल से अनगिनत बातें हुई हैं —
 “मन के हारे हार, मन के जीते जीत”,
 “मन की गति मति न्यारी”,
 “चंचल मन चपल कहलाए।”
कवियों, संतों और साधकों ने भी मन की चंचलता पर गीतों की अमिट धारा बहाई —
 “मन रे तू कहे न धीर धरे,” “छूकर मेरे मन को,” “मेरे मन ये बत बता तू किसी और चला है तू” — हर गीत मन की बेचैनी और उसकी तरंगों को छूता है।
मन एक अद्भुत शक्ति है — यही हमारे विचारों का स्रोत है, यही संकल्प-विकल्प का केंद्र है। यही अच्छे-बुरे कर्मों की प्रेरणा देता है, और यही हमारे संस्कारों को जन्म देता है।
कहा जाता है कि मन एक दिन में लगभग 60,000 से अधिक विचार करता है — जिनमें अधिकांश या तो अतीत से जुड़े होते हैं या भविष्य की चिंताओं से। वर्तमान क्षण में रहना मन के लिए अत्यंत कठिन है।
मन की तीन परतें – चेतन, अचेतन और अवचेतन
संत रमैया ने कहा था —
 “मन प्याज के समान है, उसकी परतें खोलो तो अंत में शून्य ही मिलता है।”
इसी प्रकार मन की भी तीन परतें हैं:
चेतन मन — जो देखता है, सुनता है, महसूस करता है, और तुरंत प्रतिक्रिया देता है।
 अचेतन मन — हमारे अनगिनत जन्मों के संस्कारों, विचारों और स्मृतियों का भंडार।
 अवचेतन मन — बेहोशी की वह गहराई, जहाँ संकल्प भी मौन हो जाते हैं।
मन को स्थिर करने की साधना
ऋषियों और संतों ने मन को शांति देने के लिए अनेक उपाय बताए हैं।
 उनमें प्रमुख है — साक्षीभाव।
जैसे कोई व्यक्ति शांत झील के किनारे बैठकर लहरों को आते-जाते देखता है,
 वैसे ही विचारों को आते-जाते देखना — बिना उनसे जुड़े, बिना प्रतिक्रिया दिए।
 यह अभ्यास धीरे-धीरे मन की तरंगों को शांत करता है और भीतर गहरी शांति उत्पन्न होती है।
परंतु मन विचारों की फैक्ट्री है — उसे रोकना कठिन है।
 इसलिए बापूजी दशरथभाई पटेल जी ने एक सरल उपाय बताया —
 मन को श्रेष्ठ संकल्पों में व्यस्त रखना।
जैसे गंदे जल में स्वच्छ जल का प्रवाह करने से गंदगी धीरे-धीरे समाप्त होती है,
 वैसे ही श्रेष्ठ विचारों का निरंतर प्रवाह मन को शुद्ध कर देता है।
सुबह उठते ही और रात को सोने से पहले यदि हम श्रेष्ठ, दिव्य संकल्प करें —
 जैसे “मैं शांति का बिंदु हूँ”, “मैं आत्मा हूँ, प्रकाश हूँ, शांति हूँ” —
 तो ये संकल्प अवचेतन मन की गहराई में उतर जाते हैं।
परम शांति – मन को मौन करने की सर्वोच्च विधि
बापूजी ने हमें एक दिव्य विधि बताई —
 परम शांति का संकल्प।
जब भी समय मिले, मन को “परम शांति” के विचारों में व्यस्त करो।
 जितना अधिक हम “परम शांति” का स्मरण करते हैं, उतना ही हमारा आकाश तत्त्व और दैहिक तत्त्व शांत होते जाते हैं।
 धीरे-धीरे आत्मा के भीतर गहरी स्थिरता और मौन उतरने लगता है।
जब आत्मा आत्मस्वरूप में स्थित होकर और परमात्मा से शक्ति लेकर “परम शांति” के संकल्प करती है —
 तब उसके अद्भुत, चमत्कारिक परिणाम दिखाई देते हैं।
 संकल्प जितना शक्तिशाली होता है, उतनी ही दूर तक उसकी दिव्य तरंगें फैलती हैं।
बापूजी का मंत्र – सोचो, बोलो और बनो परम शांति
बापूजी दशरथभाई पटेल जी का सरल लेकिन अत्यंत दृढ़ सूत्र है —
 “बेहद की परम शांति सोचो, परम शांति बोलो, परम शांति मिल जाएगी।”
हर एक घंटे में आत्मस्वरूप में स्थित होकर यह संकल्प करें —
 “बेहद के बेहद की परम परम परम महाशांति है… महाशांति है… महाशांति है…”
यह मंत्र केवल शब्द नहीं, यह दिव्यता की तरंगें हैं —
 जो मन को मौन करती हैं, शरीर को शुद्ध करती हैं, और आत्मा को ब्रह्मांडीय शांति से जोड़ देती हैं।
निष्कर्ष – मन की अंतिम मंज़िल मौन है
मन को वश में करने का कोई बाहरी उपाय नहीं — न तप से, न दमन से।
 केवल परम शांति के संकल्प से ही मन को स्थिर किया जा सकता है।
 जब मन परम शांति में विलीन होता है, तभी आत्मा अपनी वास्तविक स्थिति —
 परम मौन, परम प्रकाश, परम शांति — में पहुँचती है।
परम शांति।