आत्मा का विज्ञान — सूक्ष्म शरीर और परम प्रकाश की चिकित्सा

01. सबसे पहले तो हमें आत्मा को समझाना पडेगा — आत्म तत्व क्या है।
आत्मा जो है, वह परम प्रकाश, परम लाइट की बनी हुई है।
आत्मा अपने आप में निराकार स्वरूप में सत्यानंद, सच्चिदानंद, परमानंद, निःआनंद स्वरूप में रहती है।

आत्मा के मूल गुण ही ज्ञान, शांति, सुख, आनंद, पवित्रता, दिव्यता हैं।
आत्मा निराकार ईश्वर रूप में भावार्थ — कर्मातीत, गुणवती, परमात्मा ही स्वरूप होती है।

आत्मा निर्लिप्त, हर आभाव-प्रभाव से मुक्त होती है।
परंतु जब वह शरीर में आती है — जैसे स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर, कारण शरीर — तब आत्मा कर्म किए बिना नहीं रह सकती।
आत्मा मनसा, वाचा, कर्मणा कर्म में आती ही है।

आत्मा प्रकृति के तीनों गुण — सात्विक, राजसिक और तामसिक — इन तीनों के प्रभाव में आकर ही कर्म करती है।
आत्मा के अच्छे-बुरे कर्मों के कारण वह कर्म बंधन में आ जाती है।
आत्मा अपने अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मों का फल पाप कर्म कहलाता है।

आत्मा के पाप कर्मों का संचित या उसके अच्छे कर्मों का संचित उसके कारण शरीर अर्थात आकाश तत्व में रिकॉर्ड हो जाता है।
आकाश तत्व मूल तत्व है क्योंकि इसी तत्व से वायु, अग्नि, जल और मिट्टी तत्व बने हैं।

पाप कर्मों के कारण आकाश तत्व खराब होता है, और आकाश तत्व के खराब होने से वायु तत्व, अग्नि तत्व — सभी तत्वों में डिफेक्ट आता है।
हमारा सूक्ष्म शरीर आकाश, वायु और अग्नि तत्व का होता है।
जब हमारा आकाश, वायु, अग्नि तत्व खराब होता है या उसमें डिफेक्ट आता है, तो उसका परिणाम हमारे स्थूल शरीर पर भी होता है।

क्योंकि हमारे शरीर का बेस जो सेल है, हर सेल में आकाश, वायु, अग्नि तत्व है।
तो जब सूक्ष्म शरीर में डिफेक्ट आता है, हमारे सूक्ष्म शरीर के सेल खराब होते हैं, जिससे स्थूल शरीर में बीमारी आती है।

उदाहरण: जैसे कैंसर जैसी बीमारी — जो अनेक जन्मों के पाप कर्मों के संचित होने से आती है — उनका प्रभाव हमारे सूक्ष्म शरीर के किसी सेल में होता है, फिर वह स्थूल शरीर में ट्रांसफर होता है।

इसीलिए कैंसर जैसी बीमारी में लाइट का ट्रीटमेंट होता है।
परंतु वास्तविक डिफेक्ट हमारे सूक्ष्म शरीर में है।
तो सूक्ष्म शरीर का इलाज फूल साधनों से नहीं हो सकता।
इसके लिए हमें परम प्रकाश — डिवाइन लाइट — की ही ज़रूरत होती है, जो केवल और केवल योग से ही मिलती है।

बापूजी ने अपने वीडियो में यही बात कही है कि आत्मा, आत्मा स्वरूप में स्थिर होकर, परमपिता परमात्मा — अलमाइटी अथॉरिटी — से परम प्रकाश अपनी आत्मा में धारण करे।
तब यह परम प्रकाश हमारे शरीर के एक-एक सेल में प्रवाहित होता है, जिससे हमारा स्थूल, सूक्ष्म और कारण — तीनों शरीर स्वस्थ होने लगते हैं।

परंतु यह प्रक्रिया नियमित और सतत करनी होगी, क्योंकि जो भी डिफेक्ट आया है, वह अनेक जन्मों के कर्मों का संचित परिणाम है।
तो उसे ठीक करने के लिए उतनी ही शक्ति लगेगी।

दादाजी ने यह भी कहा है कि परम शांति का मंत्र निरंतर जपते रहने से मन शांत होने लगता है — इससे आकाश तत्व शुद्ध होता है।
जितना-जितना परम शांति का मंत्र आत्म स्वरूप में स्थिर होकर करेंगे, और परम प्रकाश को अपनी आत्मा में धारण करेंगे — उतना ही हमारे सूक्ष्म अंग हील होने लगेंगे।

आत्मा कभी भी बीमार, रोगग्रस्त, शोकग्रस्त नहीं हो सकती, बल्कि मन के कारण ही आत्मा रोग-शोक अनुभव करती है, भावना में आती है।
इसीलिए दादाजी कहते हैं कि भावना में जाकर हमें कोई कार्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि मन का असर हमारे तन पर पड़ता है।

इसलिए हमें अपने मन और बुद्धि पर ध्यान रखना चाहिए।
दादाजी कहते हैं:
सोने से पहले मौन धारण करो, आवाज से परे वाणी से परे का अभ्यास करो।
मेले, मख़रे से दूर रहो, कम बोलो।

ज्ञान, योग और परम शांति के वाइब्रेशन फैलाने से सब संभव है।

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