मन को शांत करने का मार्ग : ध्यान और सकारात्मक विचारों की शक्ति
मन स्वभाव से चंचल होता है। यदि उस पर नियंत्रण न किया जाए, तो यह बेचैन होकर हमें भीतर ही भीतर खाता रहता है। यह बेचैनी मन की असंख्य इच्छाओं और अनुत्तरित सवालों से उत्पन्न होती है। जब तक मन को उसके प्रश्नों के उत्तर और इच्छाओं की पूर्ति नहीं मिलती, तब तक यह शांति का अनुभव नहीं करता।
मन को समझने की आवश्यकता
मन को शांत करने के लिए सबसे पहले मन को समझना आवश्यक है। जब हमें यह बोध हो जाता है कि बेकार इच्छाएँ और लालच अंततः नुकसान ही पहुँचाते हैं, तब हम जागरूक होकर अपने बुद्धि-विवेक का सही प्रयोग करना शुरू करते हैं। जागरूकता के साथ किया गया कार्य योग मन को बंधन नहीं बनने देता। सही दिशा में आरंभ और अंत किया गया कार्य मन में स्थिरता और आत्मविश्वास लाता है।
आकर्षण और नकारात्मक विचारों से बचें
मन की भटकी सोच और आकर्षण केवल ऊर्जा का नाश करते हैं। इसलिए आवश्यक है कि हम अपनी मानसिक धारा को शुद्ध विचारों की ओर मोड़ें। ध्यान (Meditation) इस कार्य का सर्वोत्तम साधन है।
ध्यान का वास्तविक अर्थ
ध्यान केवल आँखें बंद करना नहीं है, बल्कि अपने भीतर सकारात्मक विचारों का संचार करना है। जब मन निर्मल होता है, तभी हम ईश्वर को पहचान पाते हैं। मन के विचार ही आत्मा का प्रतिबिंब बन जाते हैं। शुद्ध विचार मन को पवित्र बनाते हैं और सकारात्मक सोच जीवन की दिशा बदल देती है।
हर महान आत्मा की यात्रा एक शुद्ध विचार से प्रारंभ होती है। अनावश्यक विचारों और बोझ को त्याग दें और केवल वही विचार अपने भीतर रखें जो प्रकाश और शांति लाएँ।
ईश्वर से जुड़ें
हमेशा यह भावना रखें कि “मैं ईश्वर का अंश हूँ।” यह भावना हर परिस्थिति में आपको ईश्वर के समीप ले जाएगी और मन विचलित नहीं होगा। नियमित अभ्यास से मन निर्मल बनता है। परमात्मा के स्मरण से अंतःकरण शुद्ध होता है और यहीं से आंतरिक यात्रा प्रारंभ होती है।
सकारात्मक संकल्प का महत्त्व
जैसे सूर्य की किरणें दिन की शुरुआत करती हैं, वैसे ही हर सुबह का संकल्प सकारात्मक होना चाहिए —
“मैं निःस्वार्थ भाव से अपने सभी कार्य ईश्वर को समर्पित करता हूँ।”
जितनी गहरी ध्यान की इच्छा होगी, उतना ही गहरा ध्यान संभव होगा।
निष्कर्ष
जीवन एक अंतर्दृष्टि है। ध्यान वह नौका है जिस पर बैठकर मन रूपी नदी को पार किया जा सकता है।
शुद्ध विचार, सकारात्मक दृष्टिकोण और ईश्वर से निरंतर जुड़ाव मन को शांत कर देते हैं और आत्मा को उसके वास्तविक स्वरूप — शांति, आनंद और प्रकाश — का अनुभव कराते हैं।
परम शांति