ब्रह्मचर्य का असली अर्थ: बेहद की आत्मा की पवित्रता

बेहद के बेहद की परम परम महाशान्ति है।

ब्रह्म माना लाइट स्वरूप..

ब्रह्मस्वरूप में स्थित होना ही असली पवित्रता है.. असली ब्रह्मचर्य है।

ब्रह्म माना निराकार स्वरूप की अनुभूति करना..चर्य याने चरना माना चलते-फिरते,निराकार स्वरूप को याद करना..आत्मस्वरूप में स्थित होना और कर्मयोगी बनना ही बेहद की पवित्रता है।

काम,क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार आदि विकारों से ऊपर उठना हद की पवित्रता है।

हद की पवित्रता भी तभी आएगी जब ये ज्ञान होगा कि मैं बेहद की आत्मा हूँ।

तब व्यक्ति बार-बार ज्ञान सागर मंथन करेगा.आत्म स्वरूप में स्थित होगा और फिर उसमें हद के परिवर्तन के साथ-साथ बेहद के संस्कार आएंगे और तब आत्मा इस दुनिया से न्यारी और प्यारी हो जाएगी एवं समझ पायेगी कि ये दुनिया माया है।

आत्मा मन के मौन की तरफ जायेगी और संसार मे रहते हुए भी कर्मयोगी जीवन बिताएगी। लौकिक-अलौकिक एक दिन बहुत अच्छा बन जायेगा और आत्मा को आदि-अनादि स्वरूप का साक्षात्कार होगा कि मैं कहाँ से आई हूँ। आत्मा में सब रिकॉर्डिंग है तो उसको आत्मस्वरूप का साक्षात्कार होगा।

आत्मस्वरूप का साक्षात्कार माना तीसरा नेत्र खुल गया..यही बेहद की पवित्रता है।

परमशान्ति🙏

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