स्थितप्रज्ञ: वह अवस्था जहाँ आत्मा परमशांति को छूती है
बेहद की परमशान्ति..!!
स्थितप्रज्ञ !
स्थितप्रज्ञ अवस्था क्या है..और मनुष्य इस अवस्था को कैसे प्राप्त कर सकता है ?
ऐसा मनुष्य जो सुख-दुःख, हार-जीत ,अमीरी-गरीबी इन सब से ऊपर है अर्थात परिस्थितियां जिस पर प्रभाव नहीं डाल पाती वह व्यक्ति स्थितप्रज्ञ है।
आसक्ति सर्वनाश का मूल है। इसलिए कृष्ण ने अर्जुन से स्थितप्रज्ञ होने की बात कही। क्योंकि स्थितप्रज्ञ की स्थिति निष्काम कर्म की चरम अवस्था है। स्थितप्रज्ञ का स्पष्ट उदाहरण विशाल और अथाह सागर का हृदय है जो स्थितप्रज्ञ मनुष्य की तरह ही होता है। नदी में यदि अधिक पानी आ जाए तो उसमें बाढ़ आ जाती है और उसकी तूफान की लहरें चारों तरफ फैल कर तबाही मचा देती हैं। यही हाल थोड़ी सी सफलता वाले शूद्र मनुष्य का होता है। थोड़ा सा धन, थोड़ी सी सफलता उसे हज़म नहीं होती और वह मर्यादाएं तोड़ कर एक ओछे इंसान की तरह हरकतें करने लगता है। परंतु स्थितप्रज्ञ मनुष्य एक सागर की भांति होता है जिसमें चारों ओर नदियों का पानी एकत्र होता रहता है..परंतु सागर शांत रहता है और नदियों का जल उसकी गहराइयों में गुम हो जाता है।सागर कभी अपने किनारे नहीं तोड़ता। यही स्थितप्रज्ञ की अवस्था होती है। स्थितप्रज्ञ मनुष्य सभी तरह के सुखों के होते हुए भी निरासक्त रहते हैं और ऐसे स्थितप्रज्ञ मनुष्य को ही परमशांति प्राप्त होती है।
ऐसे स्थितप्रज्ञ मनुष्य ही जगत का कल्याण करते हैं,विश्व का परिवर्तन कर सकते हैं। उनके जीवन का उद्देश्य विश्व-परिवर्तन होता है। वे आसक्ति से परे रहते हैं..उन्हें यह चिंता नहीं होती कि लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे और हर परिस्थिति को भगवान की लीला समझ कर देखते हैं। जिस तरह चंद्रमा का प्रकाश अंधेरे में दिखता है..उसी प्रकार स्थितप्रज्ञ की भी अवस्था है।जब सारा संसार सोता है तो योगी भगवान की भक्ति में डूबा होता है। उसका सोना-जागना एक समान होता है। ज्ञानी जागे होते हैं और प्रभु का सिमरन करते हैं। निरंतर योगी होते हैं।
परमशांति की अवस्था का अनुभव करने के लिए आत्मा को स्थितप्रज्ञ अवस्था धारण करनी होगी। इसी तरह स्थितप्रज्ञ अवस्था का meaning बापूजी ने और भी clearity से समझाया है कि जब हम परमात्मा को जानकर आत्म-स्वरुप में स्थित होते हैं तो उस अवस्था को स्थितप्रज्ञ अवस्था कहते हैं। तब हमें यह समझ आ जाता है कि खुद को जानना माना खुदा को जानना। हमें यह समझ आ जाता है कि हमारा यह शरीर विनाशी है.. अविनाशी शरीर तो परम तत्व का होता है,अमरलोक में होता है। यह शरीर हमें भूत और भविष्य की तुच्छ चिन्ताओं से ऊपर उठ पुरुषार्थ करने के लिए मिला है। मन को ,बुद्धि को, संस्कारों को इस संसार की तुच्छ बातों में न लगा कर ज्ञान में डूबने से परमात्मा से योग लगता है। ऑलमाइटी अथॉरिटी से निरंतर connection जोड़ने से आत्मा में पॉवर आती है। तब मनुष्य कर्म योगी बन सकता है और स्तिथप्रज्ञ अवस्था को प्राप्त कर सकता है।
"परमशान्ति"
विश्व परिवर्तन के लिये बापूजी के बेहद के ज्ञान की ज्यादा विस्तृत जानकारी एवं अन्य ज्ञान सम्बंधित topics के लिये आप हमारे लिंक..
पर देख व सुन सकते हैं!!
परमशान्ति..!!