प्रारब्ध और संचित कर्म – आत्मा की यात्रा का रहस्य
हमारे पिछले जन्मों के संचित कर्मों में से कुछ कर्म इस जीवन के लिए मिलते हैं जो हमारा प्रारब्ध कहलाता है जिसे भाग्य भी कहते हैं। अब इसमें कई आत्माओं के सद्गुरु होते हैं या उनके नियंता सूक्ष्म जगत में उनसे जुड़े होते हैं, आत्माओं का कनेक्शन होता है।
और जिस आत्मा का धरती पर जन्म होना है उस जन्म में उसे क्या सीखना है, उसे क्या कर्म करना है, किससे कर्मबंधन काटना है, और कर्म बंधन काटने के साथ हमारी आत्मा का कल्याण भी कैसे होगा, इस आधार से आत्मा के संचित कर्मों में से कुछ कर्म प्रारब्ध के रूप में दिए जाते हैं।
किस घर में उसका जन्म होगा, किन आत्माओं/रिश्तों से उसे मार्गदर्शन या शिक्षा मिलेगी — यहाँ शिक्षा का अर्थ स्कूल की पढ़ाई से नहीं है। शिक्षा का अर्थ है ज्ञान लेना, कौशल बनना, दिशा प्राप्त करना, आत्मकल्याण करना।
उदाहरण:
किसी आत्मा को सूक्ष्म जगत में देखकर धरती पर भेजा गया है कि धरती के मनुष्य की चिकित्सा की सेवा करनी है। तो उस आत्मा को बीमारी के साथ जन्म लेना होगा, या अपने जन्म के किसी हिस्से में बीमारी का अनुभव खुद करना होगा या किसी करीबी को होगा। इससे उसे अनुभव होगा, जिससे उसके भीतर यह भाव जागृत होगा कि "दूसरे को इस दुख का सामना न करना पड़े।" इसके लिए वह डॉक्टर बनकर सेवा करेगा।
प्रत्यक्ष उदाहरण हैं —
बाबा साहब अंबेडकर, जिन्होंने गरीबी, भुखमरी, छुआछूत, सामाजिक कुप्रथाओं का व्यवहार खुद सहा। क्योंकि उन्हें अनुभव लेना था। उसी अनुभव से समाज में उन्होंने परिवर्तन की क्रांति लाई — जो हम सब जानते हैं।
लेकिन इसमें भी सब कुछ सटीक तारीख या समय के साथ फिक्स नहीं होता। अनुमानतः तय किया जाता है कि इस उम्र में यह होना है। परंतु अगर हमने अनुभव नहीं लिया, शिक्षा नहीं ली, और नए कर्म में उलझ गए — तो समय आगे या पीछे खिसक सकता है।
उदाहरण:
किसी से कर्म बंधन काटकर आगे बढ़ना था, लेकिन वह बंधन नहीं कटा। आत्मा उसमें अटकी रही। तो आगे की यात्रा भी टल जाएगी।