स्वयं परिवर्तन से विश्व परिवर्तन: ज्ञान, योग, सेवा और धारणा की शक्ति

बेहद के बेहद की परम परम महाशांति है।

स्वयं परिवर्तन ही विश्व परिवर्तन है। स्वयं परिवर्तन से विश्व परिवर्तन के चार स्तम्भ हैं:- ज्ञान,योग,सेवा और धारणा।

ज्ञान:- ज्ञान वो संजीवनी है जिससे मृत आत्मा जीवित हो उठती है। ज्ञान वो जल है जिससे आत्मा धुल जाती है। ज्ञान वो घी है जिससे आत्मा का दिया जल जाता है। ज्ञान वो है जिसे सुन आत्मा शान्त और सन्तुष्ट होती है।

ज्ञान से ख़ुशी व शक्ति मिलती है। ज्ञान सुन आत्मा आनन्दित हो उठती है। ज्ञान वो शक्ति है जिससे आत्मा निर्मल व दयावान बनती है। ज्ञान सुन कर ही आत्मा मायाजीत बनती है। ज्ञान आत्मा की दिव्य बुद्धि का ताला खोल देता है। ज्ञान ही आत्मा को दिव्य बनाता है। ज्ञान से आत्मा तत्वों को परम् तत्वों में परिवर्तित कर पाती है। ज्ञान आत्मा को परम् आत्मा बनाता है और ज्ञान बच्चों को बाप से साकार में मिलाता है।

योग:- योग माना याद,योग माना जोड़। जब हम अपने आलमाइटी अथॉरिटी बापू जी को याद करते हैं तो आत्मा में पावर आती है। हम शांत हो जाते हैं और निर्संकल्प बनते हैं। आत्मा में पावर आने से,ज्ञान से योग लगता है। जिससे ज्ञान और ज्यादा समझ में आता है। जब ज्ञान समझ में आता है तो बाप से प्यार बढ़ता है, निश्चय एवम विश्वास बढ़ता है और तब और ज्यादा योग लगता है जिससे विकर्म विनाश हो जाते हैं तथा आत्मा का कारण शरीर चार्ज होता है और आत्मा में वैराग आता है। जब ज्ञान और योग के सिवाय कुछ भी अच्छा नहीं लगता तब आत्मा कर्मातीत अवस्था की ओर बढ़ती है।

सेवा:- योग से हम निर्संकल्प बनते हैं। सच्ची सेवा निर्संकल्प बनने से ही होती है। अर्थात जब हम ज्ञान स्वरूप बन और आत्मस्वरूप बनकर बेहद के बाप का रूप धारण करते हैं तो हममें से परमशान्ति के vibrations निकलते हैं। परमशान्ति के vibrations द्वारा वायुमंडल को बदलना ही सच्ची सेवा है। हमें बाप का स्वरूप धारण करके ऊँच से ऊँच परमधाम से परमतत्वों को उतारना है। तत्वों को परमतत्वों में बदलना अर्थात वायुमंडल बदलना ही सच्ची सेवा है।

धारणा :- जब हम योग करते हैं तो योग करने से ज्ञान को धारण करने की शक्ति मिलती है। अगर हम ज्ञान को रोज अपने जीवन में इस्तेमाल करेंगें तो वो ज्ञान धारणा में आ जायेगा। पहले संस्कार बदलेंगे फिर बुद्धि बदलेगी और फिर मन बदलेगा तब आत्मा भी परिवर्तित हो जायेगी । आत्मा में परिवर्तन आना माना पावर का बढ़ना। जब आत्मा की पावर बढ़ती है तो जीवन में धारणा बढ़ती है और आत्मस्वरूप बनता है, दिव्यसवरूप बनता है। अव्यक्त स्वरूप बनता है। अव्यक्त स्वरुप की धारणा करना की धारणा है।

परमशान्ति..!

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परमशान्ति..!!

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