ज्ञान ही जीवन है: आत्म परिवर्तन से विश्व परिवर्तन तक का मार्ग

बेहद की परम परम महाशान्ति है।

जब तक हमारे अंदर ज्ञान की दृष्टि विकसित नही होगी तब तक हमारी सोच में परिवर्तन नही आएगा।

ज्ञान की दृष्टि है:-

● Always be positive never be negative.

● Attention करो tention नही।

● जो कुछ भी हमें मिला है वो हमारे कर्मों का फल है।

● भक्ति का फल ज्ञान है और ज्ञान का फल भगवान है।

● हमें जैसा फल चाहिये वैसे कर्म करने होंगें।

● स्वयं परिवर्तन ही विश्व परिवर्तन है।

● अगर हम फल की इच्छा के बिना केवल उस प्रभु की याद में हर कर्म करेंगें तो हम सुख-दुख के अनुभव से परे हो जाएंगे।

●ज्ञान से हम आत्मा हैं शरीर नहीं ये समझ आता है। अपनी आत्मा की उन्नति के लिये हम जो कर्म करते हैं वही पुरुषार्थ है। हमें अपने स्मृति होती है कि हम आत्मा हैं।

●ज्ञान से हमारे मोह नष्ट हो जाते हैं।

●ज्ञान ही बताता है कि अपने लिए जीने वाले तो जानवर हैं।

●ज्ञान तो अथाह है..ज्ञान को जल कहा गया है। जितना-जितना हम ज्ञान जल पिएंगे उतना-उतना रिफाइंड हो जाएंगे क्योंकि ज्ञान जीने की कला है।

●हमें क्या देखना है क्या नही, हमें क्या सुनना है क्या नही, हमें क्या बोलना हैं क्या नही, हमें कैसे कर्म करने हैं कैसे नही? ये सब ज्ञान से ही स्प्ष्ट होता है और बिना ज्ञान के हम अपने तनावों से मुक्त नही हो सकते।

●बिना आत्मज्ञान और, बिना प्रभु से योग के हम बदल नहीं सकते।

●इसलिये ज्ञान सुनना और योग करना हमारे जीवन के लिये अति आवश्यक है।

●ज्ञान सुनने से योग लगेगा और योग से धारणा होगी तथा धारणा से सेवा का भाव पैदा होगा।

●धारणा मतलब ज्ञान को धारण करने की शक्ति आएगी।

●जब हम ज्ञान धारण करेंगें तो हम दूसरों की सेवा कर पाऐंगे और उनके लिये inspiration बन पाएंगें। हमारा परिवर्तन देख दूसरे भी परिवर्तन के लिये प्रेरित हो पाएंगे....जिससे सेवा भी automatic होने लगेगी। ज्ञान से हमारे अंदर का विवेक जागृत हो जाएगा और हम अपनी आत्मा का स्वर सुन सकेंगे।

परमशान्ति

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परमशान्ति..!!

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